मंगलवार, 15 सितंबर 2009

सौन्दर्य बोध


चाहता हूँ
उन्मुक्त हवाओं में
झूमूँ-गाऊँ
सलोनी बारिश में
जी भर नहाऊँ
मेरी भी शाखों पर
गौरैया फुदके
रोम-रोम से
जीवन छलके
पर
ऋतुओं,
तुमहारी छुअन से
अनजान हूँ
मैं ड्राइग रूम का पौधा
नये सौन्दर्य-बोध का
अभिशप्त प्रतिमान हूँ।

सोमवार, 14 सितंबर 2009


अपनापन
एक पंछी
डालियों पर
चहचहाया, उड़ गया...
एक फूलमन उदास है
क्या सचमुच
अपनापन
एक क्षणिक अहसास है?

गुरुवार, 10 सितंबर 2009

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